मौर्य वंश (322 ई.पू. – 185 ई.पू.)
भारत के इतिहास में मौर्य वंश एक महान और प्रभावशाली साम्राज्य रहा, जिसकी स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। यह वंश न केवल अपने सैन्य संगठन और प्रशासनिक कुशलता के लिए जाना जाता है, बल्कि सम्राट अशोक के शासनकाल में सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से भी क्रांतिकारी सिद्ध हुआ।
1. चंद्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. – 297 ई.पू.)
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स्थापना: चाणक्य (कौटिल्य) के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त ने नंद वंश का अंत कर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
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प्रशासन: चाणक्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ इस काल का प्रमुख ग्रंथ है, जो तत्कालीन राजनीति, अर्थव्यवस्था, जासूसी तंत्र और प्रशासन पर प्रकाश डालता है।
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विस्तार: उन्होंने सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस निकेटर को हराया और उससे पंजाब, अफगानिस्तान व बलूचिस्तान का क्षेत्र प्राप्त किया।
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धर्म: जीवन के अंत में जैन धर्म अपनाया और श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में सन्यास लिया।
2. बिंदुसार (297 ई.पू. – 273 ई.पू.)
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चंद्रगुप्त के पुत्र और अशोक के पिता।
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यूनानी इतिहासकारों ने इन्हें “अमित्रघात” (शत्रुओं का नाश करने वाला) कहा है।
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उन्होंने दक्षिण भारत के अनेक हिस्सों को मौर्य साम्राज्य में शामिल किया, केवल तमिल राज्यों को छोड़कर।
3. सम्राट अशोक (273 ई.पू. – 232 ई.पू.)
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मौर्य साम्राज्य के सबसे प्रसिद्ध और महान शासक।
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कलिंग युद्ध (261 ई.पू.) के बाद उन्होंने हिंसा छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया।
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धम्म नीति: अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता, पशु-हत्या पर रोक, जनता की भलाई जैसी बातों पर आधारित शासन नीति।
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शिलालेख और अभिलेख: भारत के विभिन्न भागों में शिलालेखों और स्तंभों पर धम्म संदेश खुदवाए गए।
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अंतरराष्ट्रीय संबंध: उन्होंने श्रीलंका, म्यांमार, मिस्र, यूनान तक बौद्ध धर्म के दूत भेजे। उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
4. उत्तरवर्ती शासक और पतन
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अशोक की मृत्यु के बाद साम्राज्य कमजोर होता गया। उत्तराधिकारियों में कोई विशेष योग्य शासक नहीं हुआ।
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राजाओं के बीच संघर्ष और प्रांतीय शासकों की स्वतंत्रता की लालसा के कारण मौर्य वंश का पतन हुआ।
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185 ई.पू. में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और शुंग वंश की स्थापना की।
मौर्य वंश की विशेषताएँ
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प्रशासन: केंद्रीकृत शासन प्रणाली, जासूसी तंत्र, नौकरशाही, कर संग्रह की सुसंगठित व्यवस्था।
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सैन्य संगठन: विशाल सेना, हाथियों का उपयोग, रणनीतिक युद्धनीति।
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धार्मिक नीति: अशोक के काल में धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों का प्रसार हुआ।
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वास्तुकला: अशोक स्तंभ (सांची, सारनाथ), शेर का राष्ट्रीय प्रतीक, गुफा वास्तुकला का आरंभ।
निष्कर्ष
मौर्य वंश ने भारतीय उपमहाद्वीप को पहली बार एक राजनीतिक इकाई के रूप में संगठित किया। सम्राट अशोक ने भारत को विश्व मंच पर बौद्ध धर्म का केंद्र बनाया। मौर्य साम्राज्य ने भारत की प्रशासनिक, सांस्कृतिक और धार्मिक नींव को एक अद्वितीय गहराई प्रदान की, जिसका प्रभाव आज भी दिखता है