केरल का इतिहास
प्रस्तावना
केरल, भारत का दक्षिण-पश्चिमी राज्य, जिसे ‘ईश्वर का अपना देश’ (God’s Own Country) कहा जाता है, अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। अरब सागर से सटा यह राज्य प्राचीन समय से ही व्यापार, समुद्री यात्राओं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक केंद्र रहा है। यह भूमि परशुराम की मानी जाती है, जिनके विषय में कहा जाता है कि उन्होंने समुद्र को पीछे हटाकर केरल की भूमि बनाई।
1. प्राचीन इतिहास (Before 300 BCE)
सांस्कृतिक उत्पत्ति और परशुराम की कथा
केरल का नाम ‘केरम’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ है ‘नारियल’। पुराणों के अनुसार, यह भूमि भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम द्वारा बनाई गई थी। परशुराम ने अपने फरसे से समुद्र को पीछे हटाया और भूमि को ब्राह्मणों को दान में दे दिया।
संगम काल (300 BCE – 300 CE)
संगम युग तमिल साहित्य और संस्कृति का स्वर्ण युग था। इस समय केरल ‘चेर राज्य’ के अंतर्गत आता था, जिसे ‘चेर राजवंश’ द्वारा शासित किया गया। संगम साहित्य में चेर शासकों, जैसे सेनगुट्टुवन का उल्लेख मिलता है। इस काल में केरल का व्यापार रोम, अरब और ग्रीक सभ्यताओं से था।
2. मध्यकालीन इतिहास (4वीं सदी – 15वीं सदी)
चेर वंश का पुनरुत्थान (9वीं – 12वीं सदी)
इस काल में चेर वंश का पुनरुत्थान हुआ, जिसे ‘सेराल वंश’ भी कहा जाता है। चेर शासक कुलशेखर वर्मा ने केरल में एक सुसंगठित प्रशासन स्थापित किया। उन्होंने मंदिरों, शैक्षणिक संस्थाओं और संस्कृति का संरक्षण किया।
भौगोलिक और सांस्कृतिक एकता
केरल में विभिन्न जनजातियों, द्रविड़ भाषी समूहों और स्थानीय राजाओं के बीच संबंध रहे। ब्राह्मणों का प्रभुत्व बढ़ा और समाज में जाति व्यवस्था सख्ती से लागू हुई।
संस्कृति और धर्म
इस समय वैष्णव और शैव धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्मों का भी प्रभाव रहा। कालांतर में इनका स्थान हिंदू धर्म ने ले लिया, खासकर भक्ति आंदोलन के साथ।
संक्रमण काल: मुसलमानों और ईसाइयों का आगमन
- ईसाई धर्म: ईसा मसीह के अनुयायी संत थॉमस 52 ईस्वी में केरल आए। उनके द्वारा मलाबार तट पर ईसाई धर्म की स्थापना हुई।
- इस्लाम धर्म: 7वीं सदी में अरब व्यापारियों ने केरल के समुद्री मार्ग से प्रवेश किया। इस्लाम यहां बिना युद्ध के फैला।
3. कोलाथु, वेंबनाडु और कोच्चि के राजवंश (15वीं – 17वीं सदी)
स्थानीय राजवंशों का उदय
वेंबनाडु, कोलाथु, कोच्चि, कालिकट (कोझिकोड) जैसे राज्यों ने स्वतंत्र शासन किया। इन राजाओं के बीच सत्ता संघर्ष हुआ लेकिन उन्होंने बाहरी आक्रमणों का भी सामना किया।
जमोरिन (Zamorin) का शासन
कोझिकोड के जमोरिन ने एक शक्तिशाली नौसेना बनाई और अरब व्यापारियों के साथ गठबंधन किया। उनकी सत्ता का प्रभाव मलाबार के व्यापार पर पड़ता था।
4. विदेशी आक्रमण और उपनिवेशीकरण (1498 – 1947)
पुर्तगाली आगमन (1498)
वास्को-डि-गामा 1498 में कोझिकोड पहुँचे और यूरोपीय उपनिवेशीकरण की शुरुआत हुई। पुर्तगालियों ने कोच्चि और कोल्लम में अपने किले बनाए और मसालों के व्यापार पर अधिकार कर लिया।
डच और फ्रांसीसी प्रभाव
17वीं सदी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुर्तगालियों से केरल के कई हिस्सों को छीन लिया। हालांकि, डचों का शासन अधिक समय तक नहीं चला।
ब्रिटिश शासन का आरंभ
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 18वीं सदी में त्रावणकोर और कोच्चि से संधियाँ कर लीं। उन्होंने प्रशासनिक नियंत्रण धीरे-धीरे अपने हाथ में ले लिया।
त्रावणकोर और मराठा संधियाँ
महाराजा मार्तंड वर्मा (1729–1758) ने त्रावणकोर राज्य को संगठित किया और मारवा की सेना को पराजित किया। वह आधुनिक केरल के स्थापकों में माने जाते हैं।
5. आधुनिक काल (1857 – 1947)
सामाजिक सुधार आंदोलन
केरल का समाज बहुत अधिक जातिगत भेदभाव से ग्रसित था। इस समय कई समाज सुधारकों ने कार्य किया:
- श्री नारायण गुरु – “एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर” का नारा दिया।
- आय्यन काली – दलितों की शिक्षा और अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- वक्कम मौलवी – इस्लामी सुधार आंदोलन के अग्रदूत।
- चट्टम्पि स्वामी – हिंदू धर्म में सुधार के लिए कार्य किया।
महिला शिक्षा और अधिकार
त्रावणकोर और कोच्चि रियासतों में महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा दिया गया। भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में केरल में महिला साक्षरता बहुत अधिक रही।
राजनीतिक चेतना और स्वतंत्रता संग्राम
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में केरल के नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:
- केरल कांग्रेस की स्थापना
- किसानों, मजदूरों और छात्रों के आंदोलन
- 1946 में पन्नीयन आंदोलन
6. स्वतंत्र भारत में केरल (1947 – वर्तमान)
केरल राज्य का गठन (1956)
1 नवंबर 1956 को भाषाई आधार पर केरल का गठन हुआ, जिसमें त्रावणकोर, कोच्चि और मलाबार को मिलाया गया। राजधानी तिरुवनंतपुरम बनाई गई।
पहली कम्युनिस्ट सरकार (1957)
विश्व की पहली लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार केरल में बनी, जिसमें ईएमएस नंबूदिरीपाद मुख्यमंत्री बने। यह सरकार भूमि सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति लाई।
7. केरल की प्रमुख विशेषताएं और उपलब्धियां
शिक्षा
- केरल भारत का पहला पूर्ण साक्षर राज्य बना।
- प्राथमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, महिला शिक्षा में अग्रणी।
स्वास्थ्य
- केरल की स्वास्थ्य सेवाएं भारत में सर्वोत्तम मानी जाती हैं।
- शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर सबसे कम।
लिंग अनुपात
- भारत का एकमात्र राज्य जहां महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है।
अन्य उपलब्धियां
- प्रवासी केरलवासियों से आर्थिक विकास को गति मिली।
- पर्यटन, आयुर्वेद, नारियल और मसालों में प्रसिद्धि।
8. आधुनिक चुनौतियां और समकालीन स्थिति
प्रवासी जीवन
गulf देशों में रहने वाले मलयाली प्रवासी, राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
राजनीति
- केरल में मुख्यतः दो राजनीतिक मोर्चे सक्रिय हैं – एलडीएफ (वामपंथी) और यूडीएफ (कांग्रेस नेतृत्व)।
- धार्मिक सहिष्णुता, जातिगत संतुलन और समाजिक विकास की नीति अपनाई जाती है।
प्राकृतिक आपदाएं
2018 और 2019 में केरल ने भयानक बाढ़ देखी। इसके बावजूद राज्य ने अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने में प्रशंसनीय कार्य किया।
निष्कर्ष
केरल का इतिहास केवल राजाओं, युद्धों और विदेशी आक्रमणों का नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक विकास की प्रेरक गाथा है। यह वह भूमि है जहां संत, समाज सुधारक, वैज्ञानिक, लेखक और कलाकारों ने न केवल अपने राज्य को बल्कि पूरे भारत को दिशा दी।
केरल का इतिहास हमें यह सिखाता है कि जातिवाद, भेदभाव और रूढ़ियों को भी शिक्षा, जागरूकता और संगठित प्रयासों से बदला जा सकता है।
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